एनसीआर के एक एक्सपोर्टर के साथ पिछले दिनों एक वाकया हुआ। उन्होंने अपने विदेशी खरीदार को ईमेल से इनवॉयस भेजा। उसमें उनके उस बैंक एकाउंट की डिटेल्स भी थी जिसमें इंपोर्टर को पैसे जमा करने थे। उनके खाते में पैसे नहीं आए, फिर भी उन्होंने यह सोचकर अगली खेप भेज दी कि पैसे तो आ ही जाएंगे। दूसरी खेप के पैसे भी नहीं आए तो उन्होंने खरीदार से संपर्क किया। तब मालूम हुआ कि वह तो 6.5 करोड़ रुपये ट्रांसफर कर चुका है। छानबीन में पता चला कि एक्सपोर्टर का ईमेल हैक कर बैंक की डिटेल्स बदल दी गई थी। इंपोर्टर ने पैसे तो भेजे लेकिन वे दूसरे एकाउंट में चले गए।
सायबर क्राइम का यह नया तरीका रकम के लिहाज से भले छोटा लगे, लेकिन ये बिजनेस के साथ देश की इकोनॉमी को भी नुकसान पहुंचाने वाला है। सायबर अटैक में स्टॉक एक्सचेंज, बैंक और वित्तीय संस्थान, पावर प्लांट, इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर सबसे ज्यादा निशाने पर होते हैं। दरअसल, इकोनॉमी में सेंध लगाकर किसी देश को बड़ा नुकसान पहुंचाया जा सकता है। चाइनीज मोबाइल कंपनी वीवो के खिलाफ मनीलॉन्ड्रिंग की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल एफिडेविट में कहा, “कंपनी की कोशिश भारत के फाइनेंशियल सिस्टम को अस्थिर करने और देश की अखंडता को खतरे में डालने की है।”
सायबर अटैक से नुकसान भी काफी अधिक होता है। सायबर सिक्युरिटी वेंचर्स का आकलन है कि सायबर क्राइम से दुनिया को 2021 में 6 लाख करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ। यह 2025 में 10 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच सकता है। नुकसान का यह आंकड़ा अमेरिका और चीन के बाद किसी भी देश की जीडीपी से बड़ा है।
भारत को भी काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। नेशनल सायबर सिक्योरिटी कोऑर्डिनेटर लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) डॉ. राजेश पंत ने पिछले दिनों बताया था कि 2019 में सायबर क्राइम से भारत को 1.25 लाख करोड़ रुपये की क्षति हुई। माइक्रोसॉफ्ट ने इस साल मई में एक रिपोर्ट में बताया कि भारत में जितने लोगों पर सायबर अटैक हुए उनमें से 31% को आर्थिक नुकसान हुआ, जबकि ग्लोबल औसत सिर्फ 7% का है।
सबसे खतरनाक बात है कि सायबर अटैक देशों के स्तर पर भी हो रहे हैं। इसलिए इसे अर्थ युद्ध कहा जा रहा है। इसका एक उदाहरण देखिए। अमेरिका की सीनेट होमलैंड सिक्युरिटी कमेटी ने पिछले दिनों एक रिपोर्ट में कहा कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था और मौद्रिक नीति की गोपनीय सूचनाएं हासिल करने में चीन को रोकने के लिए फेडरल रिजर्व के पास पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। यानी दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के सबसे महत्वपूर्ण बिजनेस प्रतिष्ठानों में भी सायबर क्रिमिनल सेंध लगा रहे हैं।