हम सब बुरी तरह फंसे हुए थे। हमारे साथी बर्फ में फंसे थे। हम उन्हें छोड़कर आगे बढ़ गए। बर्फ का पूरा पहाड़ उनके ऊपर पड़ा था। हम थोड़ा आगे बढ़े और अपने घायल साथियों को संभाला। इसके बाद हाइपर थर्मियां भी होने लगा। लग रहा था कि अब कोई नहीं बचेगा। लेकिन, जैसे तैसे हिम्मत बांधी और बर्फ के पहाड़ के नीचे दबे अपने साथियों को निकालने का प्रयास किया। इन सबकी मृत्यु हो चुकी थी। हम और साथियों को भी तलाशने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन, मौसम फिर से बिगड़ गया। एयरफोर्स और एनडीआरएफ की टीम वहां पहुंची और हमे बेस कैंप ले गई। लेकिन, इसके बाद घटनास्थल पर जाने का किसी को मौका नहीं मिला। बर्फ के पहाड़ में फंसकर छह घंटे बाद निकले मेजर देवल वाजपेई ने यह सब बातें एसडीआरएफ के कमांडेंट मणिकांत मिश्रा को बताई।
इस बातचीत के आधार पर मिश्रा ने बताया कि वहां से कुल 46 लोग लौट रहे थे। इनमें से 16 लोग कुछ आगे थे और 30 पीछे। मेजर वाजपेई ने बताया है कि वह दोपहर ढाई बजे के आसपास वहां से निकले थे। उन्हें पता था कि बाकी सब पीछे दब गए हैं। लेकिन, उस वक्त वहां से आगे जाने के अलावा कोई चारा न था।
16 में से दो लोगों को चोट भी आई थी। इन्हें संभालने के बाद यह सब पीछे गए और फिर चार साथियों को निकाला। चारों की मृत्यु हो चुकी थी। इनमें दो ट्रेनर और दो प्रशिक्षु शामिल थे।
मेजर ने बताया है कि वहां पर कुछ और लोग भी दिख रहे थे। लेकिन, सब बुरी तरह दबे हुए थे। उनके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। कमांडेंट ने बताया कि बुधवार को बेस कैंप से एसडीआरएफ, एनडीआरएफ और निम की टीमें पैदल घटनास्थल के लिए निकली हैं। ये टीमें बृहस्पतिवार दोपहर तक घटनास्थल पर पहुंचेंगी।
आपको बता दें कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में प्रशिक्षण के लिए निकला 46 पर्वतारोहियों का दल डोकराणी बामक ग्लेशियर क्षेत्र में जिस जगह हिमस्खलन की चपेट में आया, वहां तक अभी रेस्क्यू टीम पहुंची ही नहीं है। वहां फंसे पर्वतारोहियों ने खुद के साथ साथियों को रेस्क्यू तक बेस कैंप तक पहुंचाया। वहां से बुधवार को 14 लोगों को हेलीकॉप्टर से मातली लाया गया। दल के बाकी 26 प्रशिक्षु अभी भी लापता हैं। इस दल के चार लोगों की मौत मंगलवार को ही हो चुकी है।