भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) गुरुवार को अपनी निर्धारित बैठकों से इतर एक विशेष बैठक करेगी। इस विशेष बैठक में रेपो रेट में चार बार बढ़ोतरी के बाद भी मुद्रास्फीति के काबू में न आने के कारणों की चर्चा की जाएगी। साथ ही इस बैठक के बाद मौद्रिक नीति समिति सरकार को एक पत्र लिखकर महंगाई के काबू में न आने के कारणों की जानकारी देगी।
आरबीआई के नियम कहते हैं कि यदि मुद्रास्फीति लक्ष्य लगातार तीन तिमाहियों तक पूरा नहीं होता है तो केंद्रीय बैंक सरकार को एक रिपोर्ट देता है, जिसमें इस बात का जिक्र होता है कि मुद्रास्फीति लक्ष्य को प्राप्त करने में विफलता के कारण क्या हैं, क्या कार्रवाई की गई और उनका असर कितना हुआ है। आरबीआई को एक अनुमानित समय सीमा भी बतानी पड़ेगी कि वह कब तक मुदास्फीति को नियंत्रित कर सकता है।
एमपीसी की 2016 में स्थापना के बाद पहली बार विशेष बैठक हो रही है, क्योंकि समिति लगातार तीन तिमाहियों के लिए 2-6% बैंड के भीतर खुदरा मुद्रास्फीति को रखने में विफल रही है। खुदरा मुद्रास्फीति जनवरी से 6% से ऊपर बनी हुई है और सितंबर में खाद्य कीमतों में वृद्धि के कारण सितंबर में बढ़कर 7.41% के पांच महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गई है।
बीओएम के पूर्व अर्थशास्त्री जतिन सालगवकर का मानना है कि आरबीआई ने अपनी तरफ से कोशिश ईमानदार की है, लेकिन दुर्भाग्य से महंगाई कम नहीं हुई है। इसके लिए बहुत-सी चीजें जिम्मेदार हैं। केंद्रीय बैंक रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे बाहरी कारणों, आपूर्ति की चिंताओं (जिससे कमोडिटी की कीमतों में तेजी आई) आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और COVID-19 महामारी से उपजी दीर्घकालिक परिस्थितियों का हवाला दे सकता है।